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Shrimanasvidhya is a platform dedicated to disseminating information about the idea of a gurukul - a traditional Indian educational system focused on holistic learning and community, under the guidance of Bramhachari Mahesh Swaroop Ji. I advocate for unity amongst Hindus and share insights from the Shri Vidya, one of the 10 revered Mahavidyas in my lineage.
ब्रह्मचारी महेश स्वरूप एक साधारण और अनुशासित सनातन धर्म के अनुयायी और साधक हैं। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन मानस विद्या और श्री विद्या साधना में बिताया है। उनका विश्वास है कि हर समस्या का समाधान हमारे वेदों और शास्त्रों में निहित है, और साधना ही वह सबसे महत्वपूर्ण रास्ता है, जिसके द्वारा हम इन समस्याओं का समाधान पा सकते हैं। इस समय में,
ब्रह्मचारी महेश स्वरूप एक साधारण और अनुशासित सनातन धर्म के अनुयायी और साधक हैं। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन मानस विद्या और श्री विद्या साधना में बिताया है। उनका विश्वास है कि हर समस्या का समाधान हमारे वेदों और शास्त्रों में निहित है, और साधना ही वह सबसे महत्वपूर्ण रास्ता है, जिसके द्वारा हम इन समस्याओं का समाधान पा सकते हैं। इस समय में, जब समस्याओं के बारे में बात करना फैशन बन गया है, ब्रह्मचारी महेश स्वरूप का मानना है कि यह समय है कि हम युवाओं को समस्या हल करने के तरीके सिखाएं और उन्हें इस दिशा में प्रशिक्षित करें। ब्रह्मचारी महेश स्वरूप का उद्देश्य है की बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के एक पौधशाला, गौशाला और पाठशाला की स्थापना की जाए। जिसको सिर्फ सनातन धर्म के ब्रांड के नीचे चलाया जाए क्योंकि कि केवल सनातन धर्म ही वह धर्म है जो सभी धर्मों का सम्मान करता है और “वसुधैव कुटुम्बकम” के सिद्धांत को अपनाता है।
कुंभ 2025 में ब्रह्मचारी महेश स्वरूप का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है - सनातन धर्म को बढ़ावा देना और लोगों को अपनी साधना का अनुभव देना।
कुंभ मेला एक प्राचीन और पवित्र हिन्दू धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 वर्ष में चार प्रमुख स्थानों—इलाहाबाद (प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—पर आयोजित होता है। यह मेला उस समय आयोजित होता है जब ग्रहों की स्थिति विशेष रूप से अनुकूल होती है, और इसे धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
कुंभ मेले का इतिहास अत्यंत प्राचीन है, जो
कुंभ मेला एक प्राचीन और पवित्र हिन्दू धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 वर्ष में चार प्रमुख स्थानों—इलाहाबाद (प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—पर आयोजित होता है। यह मेला उस समय आयोजित होता है जब ग्रहों की स्थिति विशेष रूप से अनुकूल होती है, और इसे धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
कुंभ मेले का इतिहास अत्यंत प्राचीन है, जो वेदों और पुराणों में वर्णित है। इसे भगवान विष्णु के अमृत मंथन से जुड़ा हुआ माना जाता है, जब देवताओं और राक्षसों के बीच मंथन से अमृत निकला था, और इसे लेकर भगवान विष्णु ने इस स्थान पर स्नान किया था। तब से यह परंपरा चली आ रही है कि इस समय पवित्र नदी में स्नान करने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आज के समय में कुंभ मेला एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक समागम बन चुका है, जिसमें लाखों श्रद्धालु और संत-महात्मा भाग लेते हैं। यह मेला न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में शांति, एकता और समृद्धि का संदेश भी फैलाता है। यहाँ पर विश्वभर से लोग आते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं, और अपने जीवन को धार्मिक और मानसिक शुद्धि की ओर अग्रसर करते हैं।
वर्तमान कुंभ मेला आधुनिकता और परंपरा का संगम है, जिसमें ऑनलाइन पंजीकरण, डिजिटल सेवाओं और बेहतर यातायात व्यवस्था के माध्यम से श्रद्धालुओं को अधिक सुविधा दी जाती है। यह मेला आज भी अपने ऐतिहासिक महत्व को जीवित रखते हुए एक नए रूप में समाज को जोड़ने का कार्य कर रहा है।
यह संसार कैसे अस्तित्व में आया? इस प्रश्न पर सदीयों से विचार और प्रयोग किए गए हैं। अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानों ने यह सिद्ध किया है कि इस समस्त ब्रह्माण्ड का अस्तित्व एक परमशक्ति के कारण है, जो सर्वव्यापक है। ईश उपनिषद के पहले मंत्र में कहा गया है -
"ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किं च जगत्यां जगत्"
अर्थात् समस्त ब्रह्माण्ड का प्रत्येक कण उस परमशक्त
यह संसार कैसे अस्तित्व में आया? इस प्रश्न पर सदीयों से विचार और प्रयोग किए गए हैं। अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानों ने यह सिद्ध किया है कि इस समस्त ब्रह्माण्ड का अस्तित्व एक परमशक्ति के कारण है, जो सर्वव्यापक है। ईश उपनिषद के पहले मंत्र में कहा गया है -
"ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किं च जगत्यां जगत्"
अर्थात् समस्त ब्रह्माण्ड का प्रत्येक कण उस परमशक्ति का घर है। इस परमशक्ति के कारण ही समस्त जड़, चेतन और अचेतन का उत्पत्ति, पालन और विसर्जन होता है। यह परमशक्ति अनेक रूपों में दिखाई देती है।
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